User:Dr shobha Bhardwaj
अमीर खुसरो ‘तूतिये हिन्द’ डॉ शोभा भारद्वाज भारत में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है अमीर खुसरो पहले साहित्यकार थे ,खड़ी बोली को संवारा साहित्यक रूप दिया उन्हें खड़ी बोली के आदि कवि माना जाता है आगे जाकर आधुनिक हिंदी एवं उर्दू का आधार बनी |
1253 से 1325 भारतीय इतिहास के सल्तनत काल में एक महान इतिहास कार , दरबारी ,शायर ,गायक , संगीत में गजल ,ख्याल ,कव्वाली ,रुबाई ,दोहे पहेली , प्रसिद्ध तराना अनेक राग रागनियों कई वाद्य यंत्रों के अविष्कारक , विभिन्न भाषाओं के जानकार महान सूफी संत निजामुद्दीन ओलिया के प्रिय शिष्य जिन्हें ईरानी शायर हाफिज शिराजी ने तूतिये हिन्द का नाम एवं सम्मान दिया था एवं हिंदी के जनक “वह अमीर खुसरो” थे ,उन्होंने अपने समय के 11 सुल्तानों को तख्त नशीन होते देखा, सात सुल्तानों के दरबारों की शोभा बढ़ाई जिनमें इनका पहला आश्रयदाता सुलतान बलबन का भतीजा मलिक छज्जू गजब का साहित्य पारखी ,सुलतान बलबन ,मुहम्मद कैकुबाद ,सुलतान जलालुद्दीन खिलजी , अलाउद्दीन खिलजी ,मुबारक शाह खिलजी एवं गयासुद्दीन तुगलक थे | खुसरो ने अपने जीवन में दरबारी उथल पुथल, षड्यंत्र अपने ही विश्वास पात्रों एवं प्रियजनों द्वारा पितातुल्य सुल्तानों की हत्यायें भाईयों की सत्ता हथियाने की लालसा में मनमुटाव एवं षड्यंत्र देखे थे | अमीर खुसरो के पिता सैफुद्दीन मुहम्मद तुर्की के लाचीन कबीले के सरदार थे |ईराक के बगदाद शहर में तातरियों के हमले ने ऐसा तांडव मचाया वह अन्य परिवारों के समान आश्रयहीन हो कर भारत आ गये | दिल्ली के तख्त पर गुलाम वंश के शासक सुलतान इल्तुतमिश आसीन थे उनके दरबार में अपनी सैन्य कुशलता के बल पर शाही सेना की एक टुकड़ी के सरदार बन गये उन्हें उत्तरप्रदेश के एटा जिले में गंगा किनारे बसे पटियाली गावँ की जागीर दी गयी उस समय यह गावं मोमिन पुर के नाम से जाना जाता था यहीं अमीर खुसरो का जन्म हुआ उनका पूरा नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन था लेकिन वह अमीर खुसरो के नाम से जाने जाते हैं | इनके नाना दिल्ली में बसे इमादुलमुल्क रावल हिन्दू राजपूत थे लेकिन उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था अत: अमीर खुसरो तुर्क एवं भारतीयता का मेल लेकिन विशुद्ध भारतीय थे उनके अनुसार
“हस्त मेरा मौलिद व मावा व वतन” (हिन्द मेरी जन्म भूमि है|) हिन्द कैसा है ?
‘किश्वरे हिन्द अस्त’ बहिश्ते बर जमीन (भारत देश धरती पर स्वर्ग हैं ) इनके पिता पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन अपने पुत्र की शिक्षा का विशेष प्रबंध किया| इनके पहले गुरु काजी असदुद्दीन मुहम्मद अपने समय के प्रसिद्ध लेखक थे | खुसरो को बचपन में इनके पिता सूफी संत निजामुद्दीन ओलिया के दर पर ले गये खुसरो को हजूर की दिव्य दृष्टि ने पहचान लिया बालक अनमोल है उनका सही शिष्य आ गया तब से दोनों गुरु शिष्य एक दूसरे के हो गये | खुसरो के पिता की एक मुहिम में मृत्यू हो गयी बाद में वह अपने नाना की छत्र छाया में रहे नाना का घर भारतीय संस्कृति का गढ़ था | खुसरो को संस्कृत ,अरबी फ़ारसी तुर्की और अन्य भारतीय भाषाओं का ज्ञान मिला उन्होंने अपने समकालीन कवियों एवं शायरों को पढ़ा और उनको समझा | अपनी पुस्तक तुहफतुस्सग्र की भूमिका में उन्होंने लिखा था ईश्वर की कृपा से में 12 वर्ष की अवस्था में मैं शेर और रुबाइयां कहने लगा विद्वानों ने दाद दे कर मेरा हौसला बढ़ाया| 17 वर्ष की अवस्था में खुसरो साहित्य जगत में छा गये |गजल में ईरान के शिराज के सादी ,मसनवी में निजामी ,उनकी कविताओं में खाकानी और कसीदे लिखने पढने में कमाल इस्माईल और हजरत निजामुद्दीन के प्रभाव से सूफीइज्म की छाप साफ़ देखी जा सकती है लेकिन उनकी विशेषता है भारत एवं ईरान के पर्शियन शायरों में कोई इन्हें कोई मात नहीं दे सकता था| इनके द्वारा अनेक ग्रन्थों की रचना की गयी विशेष बात यह है खुसरो का इतिहास लेखन और शायरी साथ- साथ चलते थे | इतिहासकार अमीर खुसरो – इनके पहले आश्रयदाता मलिक छज्जू सुलतान बलबन का भतीजा था वह साहित्य प्रेमी प्रतिभा का बहुत बड़ा पारखी था उसने इनकी प्रतिभा को पहचाना खुसरो ने भी उसके लिए अनेक कसीदे लिखे एवं पढ़े लेकिन यह साथ राजनीति का शिकार हो गया| सुलतान बलबन इन्हें युद्ध लड़ने कुमुक के साथ ले जाते थे बलबन के पुत्र बुगरा एक विद्रोह को दबाने अपने पिता बलबन के साथ बंगाल गये वह खुसरो को भी अपने साथ ले गये यहाँ उन्होंने अपनी प्रसिद्ध मसनवी ‘फतहनामा’ की भूमिका बनाई | बुगरा खां को बंगाल का हाकिम बनाया गया वह चाहते थे खुसरो उनके साथ रहें लेकिन उनका दिल दिल्ली में ही रमता था |बलबन का बड़ा पुत्र मुहम्मद का आन मुल्तान का हाकिम था वह विद्वानों को बहुत सम्मान देता था उसने ईरान के प्रसिद्ध फ़ारसी शायर आगा शेख सादी को अपने दरबार में आने का न्योता दिया लेकिन शेख सादी बहुत बूढ़े हो चुके थे उन्होंने अपने बजाय खुसरो की सिफारिश की | मुल्तान शहर अरबी व फ़ारसी के संगीतकारों का गढ़ था यहाँ खुसरो को पंजाबी भाषा को जानने एवं लिखने का मौका मिला उन्होंने अरबी एवं तुर्की साजों के साथ पंजाबी गीतों को गा कर सुर ताल से चार चाँद लगा दिये | यहाँ मुल्तान के हाकिम मुहम्मद की प्रशंसा में ‘वस्तुल हेवात’ नाम का दीवान लिखा| मुल्तान सीमांत प्रदेश था मंगोलों के हमलों में मुहम्मद हमलावरों के हाथों मारे गये कुमुक में शामिल खुसरो को बंदी बना कर बलख और हिरात ले गये लेकिन सौभाग्य से दो वर्ष बाद इन्हें छोड़ दिया वह दिल्ली लौट आये| सुल्तानों में उन्होंने सबसे पहले सुलतान बलबन के लिए कसीदे लिखे थे लेकिन उनकी काव्य में रूचि नहीं थी | खुसरो ने मुहम्मद के शोक में मर्सिया लिखा था उसके कुछ शेर दरबार में पढ़े पुत्र की मृत्यू का हृदय विदारक वर्णन सुन कर सुलतान हिचकियाँ लेकर रोने लगा तीव्र ज्वर से तीन दिन बाद उसकी मृत्यू हो गयी| बलबन के बाद राजनीतिक उथल पुथल के बीच दिल्ली के तख्त पर बैठे कैकुद्दीन मारे गये उनके वध के बाद गुलाम बंश की सत्ता का अंत हो गया | खुसरो को अमीर अली सर जानदार के यहाँ नौकरी मिली वह उनको अवध ले गये दो वर्ष अवध मे रह कर उन्होंने ‘अस्पनामा’ लिखा उनके लेखन में अब अवधी का प्रभाव देखा जा सकता है जबकि पहले उनकी भाषा में बंगाली और पंजाबी के शब्द भी नजर आते थे अब अवधी ,बृज हिन्दवी से भाषा में खूबसूरती बढ़ गयी भाषा पूरी तरह आज की खड़ी बोली है लेकिन खुसरो को दिल्ली पसंद थी |
दिल्ली पर खिलजी वंश ने सत्ता पर अधिकार कर लिया जलालुद्दीन खिलजी तख्तनशीन हुए वह बहुत उदार एवं खुसरो के प्रशंसक थे | खुसरो फिर दरबार की रौनक बने उन्हें अमीर की उपाधि दी गयी अब रोज रात को नृत्य गान की महफिल सजती थी अमीर खुसरो अपनी नई गजल पेश करते | अपनी प्रसिद्ध मसनवी ‘मुफ्ताह-उल-फतूह इसी काल में लिखी गयी |सुलतान का भतीजा एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी कड़े माणिक पुर का गवर्नर अलग प्रकृति का महत्वकांक्षी युवक था उसने जीतने के लिए गुजरात की और रुख किया यहाँ से वह अकूत धन सम्पत्ति साथ लाया था उसकी ताकत इतनी बढ़ चुकी थी अब उसे दिल्ली का तख्त चाहिए था अपने चाचा को मार कर वह धूमधाम से उनके सिंहासन पर बैठा| सुलतान अलाउद्दीन भी खुसरो के प्रशंसक थे उन्होंने अमीर खुसरो को खुसरू – ए -शौरा की उपाधि से सम्मानित किया | वह जब भी किसी राज्य पर हमला करने जाते अमीर खुसरो को साथ ले जाते खुसरो ने उस काल की ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र अपनी गद्य रचना खज़ाइन –उल –फतूह में विस्तार से किया है ‘नूर सिपिहर’ नामक मसनवी में अपनी समकालीन इतिहास की झांकी प्रस्तुत की थी लेकिन निरंकुश शासक के सामने इतिहास के साथ न्याय नहीं किया जा सकता इतिहास लिखा नहीं लिखवाया जाता था यही कारण है खुसरो जैसा महान इतिहास कार केवल सांकेतिक रूप से ही इतिहास लिख सका था कहते हैं उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को चितौड़ पर हमला करने से रोका था |राजस्थानी इतिहास कारों ने चितौड़ की रानी पद्मनी का 16००० रानियों के साथ जौहर का वर्णन किया है लेकिन इतिहास के उस काले पन्ने पर वह कलम नहीं चला सके | उनका एक और ऐतिहासिक ग्रन्थ तारीख – ए अलाई है उन्हीं दिनों उन्होंने अपनी मसनवी मजनू लैला लिखी थी | उनका पहला दीवान तोह्फ्तुस्सिगर था आश्चर्य है इसे उन्होंने किशोरावस्था में लिखा था इसमें कसीदे ,तर्जीबन्द,कतऐ, एक मसनवी और मर्सिये शामिल हैं |
अलाउद्दीन गुजरात विजय के दौरान राजा कर्ण देव अपनी बेटी देवल देवी को बचा कर देवगिरी ले गये लेकिन उनकी पत्नी रानी कमला अलाउद्दीन के कब्जे में आ गयी वह अपने समय के प्रसिद्ध गायक गोपाल नायक एवं एक किन्नर को अपने साथ लाये जो आगे जा कर अपने काल के इतिहास का हिस्सा बना |रानी कमला से सुलतान ने विवाह कर अपने हरम में दाखिल कर लिया रानी कमला के आग्रह पर उसकी बेटी देवल देवी को देवगिरी से पकड़ कर दिल्ली लाया गया उसका निकाह अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खां से हुआ उन दोनों की प्रेम कहानी के वर्णन में खुसरो ने एक प्रसिद्ध ग्रन्थ भी लिखा | अलाउद्दीन मलिक काफूर पर पूरी तरह आसक्त एवं उसका आशिक था उसी ने सुलतान अलाउद्दीन का वध कर उनके वंश का खात्मा कर दिल्ली की गद्दी हासिल की लेकिन वह भी 40 दिन बाद मारा गया | दिल्ली तख्तनशीन ‘मुबारक शाह खिलजी’ को खुसरो के कसीदे बहुत पसंद थे लेकिन उनको उनके मंत्री नें उन्हें मार डाला| दिल्ली के तख्त पर पंजाब से आकर गाजी खां ने कब्जा कर लिया वह गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुलतान बना| अब अमीर खुसरो सुलतान गयासुद्दीन तुगलक के दरबारी थे उनके नाम पर उन्होंने तुगलक नामा की रचना की | अमीर खुसरो द्वारा रचित उनके ग्रन्थों से उनके समकालीन सुल्तानों का इतिहास जाना जा सकता है | उन्हीं के समय के प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी भी थे |बरनी को खुसरो की कब्र के बगल में दफनाया गया था | हैरानी की बात है ऐसा अद्भुत कलाकार सैनिक भी था उन्होंने कई कुमुकों का नेतृत्व ही नहीं युद्धों का सजीव वर्णन भी किया था जो इतिहास बन गये |
अधिकतर लोग इन्हें संगीत कार के रूप में जानते हैं इन्होंने ईरानी रागों को भारतीय रागों से मिला कर अनेक रागों एवं घुनों की रचना की जिनमें जिंगोला ,हिजाज और नौरोज अधिक प्रसिद्ध हैं सनम ,धोरा, तोड़ी, मिया मल्हार,छोटा ख्याल और भी अनेक राग हैं फ़ारसी के महान विद्वान ने हिंदी एवं फ़ारसी के मेल से हिन्दवी में भी अनेक रचनाएँ की इन रचनाओं में अलग तरह की मिठास है |
महान संत निजामुद्दीन ओलिया- खुसरो निजामुद्दीन औलिया के मुरीद थे दिन भर वह दरबार में हाजरी देते लेकिन शाम को औलिया साहब की दरगाह में जाए बिना उन्हें चैन नहीं मिलता था ख्वाजा साहब उन्हें तुर्क-ए –अल्लाह के नाम से पुकारते थे| अपने गुरु के प्रेम में खुसरो नें अनेक कव्वालियों लिखा उन्ही में उनका लिखा बहुत कठिन है डगर पनघट की ,कैसे में भर लाऊं मधवा से मटकी| मोरे अच्छे निजाम पिया –कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी वह सूफी वाद से प्रभावित थे जो उनकी कविताओं में भी झलकता है वह पिय के प्रेम में इतने तन्मय रहते थे उन्हें बाह्य कर्मकांड को जरूरत नहीं थी काफिरे - इश्कम मुसलमानी मरा दर कार नीस्त हर रगे मन तार गश्ता हाजते जुन्नार नीस्त ( मैं प्रेम का काफिर(उपासक) हूँ मुझे मुसलमानी की जरूरत नहीं है मेरी हर रग तार बन गयी है मुझे जनेऊ की भी जरूरत नहीं है | उनका ईश्वर के प्रति अनुराग इतना बढ़ गया वह कहते हैं खुसरो रैन सोहाग की ,जागी पी के संग ,तन मेरो मन पीउ को दौऊ भये एक रंग| खुसरो अपने गुरु की शान में कहते हैं मेरी श्रेष्ठता का सारा श्रेय आपको है मेरी प्रतिभा आप के वरदान का फल है |वह उनके प्रेम के रंग में सरोबार हो चुके हैं आज रंग है ए माँ रंग है री ,मेरे महबूब के घर रंग है री अरे अल्लाह तू है हर ,मेरे महबूब के घर रंग है री, बहुत खूबसूरत राग में की गयी रचना है वह स्वयं जब गाते थे ऐसा समा बंधता है श्रोताओं को समय का भान ही नहीं रहता था | ओलिया साहब की शान में उन्होंने अनेक अनमोल गीत लिखे गुरु उनके गले की मिठास के लिए इन्हें संगीत की कुंजी कहते थे | उनका भी अपने शिष्य के प्रति प्रेम अद्भुत था एक बार सूफी संत ने फरमाया था धार्मिक रस्म इजाजत नहीं देते नहीं तो मैं चाहूँगा खुसरो को मेरी ही बगल में दफनाया जाए | खुसरो कुमुक के साथ लड़ने जा रहे थे पहले ख्वाजा के दर पर माथा टेका ,उनसे इजाजत ली ओलिया हजूर ने कहा ‘इंशा अल्लाह’ जल्दी लौटने का वादा कर कुमुक के साथ बंगाल की तरफ कूच किया | काफी अरसे बाद जब लौटे हजूर का इंतकाल हो चुका था खुसरो बेहाल हो गये वस्त्र फाड़ डाले मुहँ पर खाक मल ली उनकी मजार के पास घुटनों के बल बैठ गये तड़फ कर कहा “ सुभानअल्लाह आफताब दर जेरे जमीं ओ खुसरो जिन्दह” सुभानअल्लाह सूर्य जमीन के नीचे छुप जाये और खुसरो ज़िंदा रहे क्यों ? उन्होंने रो-रो कर हजूर की शान में कहा
गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केश
चल खुसरो घर आपने ,रैन भई चहु देश | कुछ समय बाद खुसरो का भी इंतकाल हो गया उन्हें ओलिया साहब की कब्र के पास दफनाया गया | उन्होंने अनेक वाद्य यंत्रों का आविष्कार किया माना जाता है सितार उनका आविष्कार है| भारतीय वाद्ययंत्र पखावज का छोटा रूप ढोलक , तबला एवं सारंगी जैसे वाद्य यंत्र उनकी देन हैं पखावज के दो भाग कर तबला बनाया आज भी तबले की संगत के बिना गायकों को गाने में आनन्द नहीं आता |श्रंगार रस के दोनों पक्ष संयोग वियोग एवं हर रस पर अपनी लेखनी चलाई युद्ध के बाद अपने समय के लुटे पिटे गरीबों की दीन दशा का वर्णन करते हुए लिखा बाल नुचे कपड़े फटे मोती लिए उतार अब विपदा कैसी बनी जो नंगी कर दी नार आज भी विवाह के अवसर पर उनके अनेक गीत ढोलक की थाप पर गाये जाते हैं| बेटी विदाई के समय उलाहना देती कहती है काहे को ब्याही बिदेस रे लखिया बाबुल मोरे भईया के दी है बाबुल महला-दुमहला , हम को दी है परदेस , लखि बाबुल मोरे
कहार डोली गावँ के बाहर सुस्ताने के लिए उतार देते हैं | बेटी गावं की कच्ची सड़क को निहारती है खुसरो कहते हैं
आगे – आगे बहना आई ,पीछे- पीछे भैया | दांत निकाले बाबा आया ,बुर्का ओढ़े मैया| उनके लिखे सावन के गीत अम्मा मोरे बाबा को भेजो जी , की सावन आया, ऐसे अनेक गीत आज गाये जाते हैं लेकिन लोग रचयिता को कम जानते हैं | खुसरो की लोकप्रियता, वह सफर पर थे उन्हें प्यास लगी गाँव की गोरियां कुए से पानी भर रहीं थी वह उन्हें पहचान गयी बोलीं पानी देंगी लेकिन खीर , चरखा , कुत्ता और ढोल पर शेर कहिये तब खुसरो ने कहा “खीर पकाई जतन से और चरखा दिया चला
आया कुत्ता खा गया ,तूँ बैठी ढोल बजा |” ला पानी पिला | खुसरो की हिंदी भाषा के लिए एक और देन ‘खालिक बारी’ एक पर्यायवाची शब्द है जिसमें शेरों के माध्यम से फ़ारसी ,अरबी ,तुर्की शब्दों के हिंदी में पर्याय वाची दिए गये हैं | अलाउद्दीन ने अपने पुत्र खिज्र खां के विवाह के अवसर पर दक्षिण के अनेक कलाकारों को कला के प्रदर्शन का मौका दिया विशाल समारोह था | लाल किले के मैदान में शाही तम्बू लगाये गये | जब अलाउद्दीन सुलतान नहीं थे वह गुजरात फतह करने गये वहाँ से अपने समय के अद्भुत संगीत कार गोपाल नायक को लाये थे कहते हैं यात्रा के दौरान थका हारा सुलतान का लश्कर यमुना के किनारे विश्राम के लिए रुका ‘गोपाल नायक’ दुखी थे वह ब्रम्ह महूर्त में गाने लगे उनके गले से निकली स्वर लहरियां शांत वातावरण में फैलने लगीं अद्भुत स्वर्गीय संगीत सुन कर निजामुद्दीन ओलिया ट्रांस में आ गये उनके केश हवा में लहराने लगे, ऐसा समा बंधा अंत में वह अचेत हो गये | हजूर चाहते थे खुसरो वैसा ही संगीत रचें | हरम की महिलाओं के लिए संगीत की महफिल का आयोजन किया गया मंच के पास सुलतान गद्दी पर विराजमान थे गोपाल नायक को गाना था खुसरो हाथ में भाला लेकर चोबदार बन कर खड़े थे सुलतान उन्हें पहचान कर मुस्कराए लेकिन खुसरो केवल स्वर्गीय संगीत सुनना चाहते थे गोपाल ने गाया समा बंधा लेकिन पेट से उठने वाली स्वर लहरियों का उन्होंने प्रदर्शन नहीं किया | खुसरो जिस संगीत को सुनना चाहते थे उससे वंचित रहे | उन्होंने ‘नूह सिपहर’ ग्रन्थ में भारतीय संगीत की प्रशंसा करते हुए लिखा ऐसा संगीत जिसके प्रभाव से हिरन मुग्ध होकर चेतना हीन हो जाते हैं| गोपाल नायक ने खुसरो को भारतीय संगीत का भक्त बना दिया | वह भारत की धरा के भी अनन्य भक्त थे उन्होंने नहीं अपने ग्रन्थ में 112 शेर भारत के यशोगान पर लिखे |
भारतीय संगीत में भजन राग ध्रुपद में गाये जाते थे | खुसरो ने ध्रुपद के स्थान पर ख्याल की खोज की ,अनेक पुराने रागों को थोड़ा बदल कर नई धुनें बनाई | कव्वाली और ‘तराना’ खुसरो का ही आविष्कार है | आज भारतीय फिल्मों में खुसरो की गजलों एवं कविताओं का कुछ हेर फेर के साथ जम कर प्रयोग किया जाता है | कई सूफी साधक उनका कलाम गा कर ऐसा समा बांधते हैं लोग आनन्द के सागर में डूब जाते हैं | ताली बजाते बजाते श्रोताओं के हाथ थक जाते हैं ,खड़े होकर ताली बजाओ वह धन्यवाद के तौर पर गाते –गाते बलैयाँ लेते हैं दाद देने वाले धन्य हो जाते हैं | उनको हिंदी फ़ारसी की मिली जुली गजल लिखी उनकी प्रसिद्ध गजल ज हाले मिस्की मकुन तगाफुल ,दुराये नैना , बनाय बतियाद्द, की ताबे –हिज्राँ न दारम ऐ जाँ,लहू काहे लगाए छतियाँ | शबाने –हिज्राँ दराज चूं जुल्फ व रोजे –वसलत चू उम्र कोताह , सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियाँ |” ऐसी ही अनेक गजलें फिल्मों में प्रसिद्ध हुई | इनमें फ़ारसी बोलने का लहजा बहुत मीठा है | अमीर खुसरो की शान में जितना भी लिखा जाए कम है उनकी लिखी पहेलियाँ जैसे
“दस नारी का एक ही नर , बस्ती भाहर वाका घर
पीठ सख्त और पेट नरम ,मुहँ मीठा तासीर गर्म” (‘खरबूजा’ )जिसकी शान में और भी बहुत कुछ लिखा उत्तम फल , अमृत के गुणों वाला इसमें कंद से भी अधिक मिठास है
इनकी पहेलियाँ आज भी चलन में हैं |
जैसे- ‘जल कर बने जल में रहे , आँखों देखा खुसरो कहे’ (काजल) खुसरों की कह मुकरियाँ उनमें लय है- द्वारे मोरे अलख जगाये ,भभूत विरह के अंग लगाए सिंगी फूँकत फिरे वियोगी ,ए सखी साजन न सखी जोगी | इनके दो सूखने (कहना,वार्ता ) , सितार क्यों न बजा ? औरत क्यों न नहाई? -पर्दा न था पंडित क्यों प्यासा ? गधा क्यों उदासा, उत्तर लोटा ऐसे अनेक शब्दों के चमत्कार हैं | अपने समय के ‘सुखनवर’ ब्यान करने का अंदाज और किसी में नहीं है| ढकोसले नाम से ही स्पष्ट है बेकार की बातें इन्होने ढकोसले को भी एक रूप दे दिया गोरी के नैना ऐसे बड़े जैसे बैल के सींग एक और “पीपल पकी पिपलियाँ झड़-झड़ पड़े हैं बेर ,
सर में लगा खटाक से वाह बे तेरी मिठास” | सुन कर लोग हंसते थे | वर्षों ईरान में रही हूँ हाफिज सादी, फिरदौस और रूमी अनेक शायर थे उनकी रचनाओं का अंग्रेजी में तर्जुमा मिलता है पढ़ कर समझने की कोशिश की लेकिन वहाँ के लोग बताते हैं हिन्द में एक महान शायर हुए हैं पूछो क्या ग़ालिब ?नहीं उनसे पहले अमीर खुसरो जिनके कलाम में सभी फ़ारसी शायरों के कलाम से अधिक खूबसूरती है | इनकी फ़ारसी रचनाओं की पांडू लिपियाँ आज भी विदेश के पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं | महान खुसरो साहित्य जगत में अनमोल रत्न हैं उनको समझना भी आसान नहीं है | उनके गीत कव्वालियाँ कई घरानों की रोजी है ,पहेलियाँ ढकोसले कह मुरकियों का प्रयोग जन समाज में इतना प्रचलित हैं कई यह भी नहीं जानते इनका रचयिता कौन है |इनके कलामों की संख्या लाखों में शायद चार लाख हैं | डॉ शोभा भारद्वाज